हिंदी

राष्ट्रीय युवा दिवस – 12 जनवरी

स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। स्वामी विवेकानंद जी का असली नाम नरेंद्र नाथ दत्त था जिस वजह से उनको नरेन नाम से भी जाना जाता था। स्वामी विवेकानंद बचपन से ही एक कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। बचपन में ही उनका झुकाव अध्यात्म की तरफ हो गया था। 

वर्ष 1985 में भारत सरकार ने स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिवस को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप घोषित किया था तब से प्रतिवर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस  मनाया जाता है। स्वामी जी सन्त रामकृष्ण परमहंस जी के शिष्य थे। स्वामी जी की मृत्यु 04 जुलाई 1902 को हावड़ा के बेलूरमठ में हुई थी।

एक ओर जहां स्वामी विवेकानंद जिनकी माताजी एक आध्यात्मिक गुणों वाली महिला थी वहीं दूसरी ओर उनके पिता आधुनिक विचारो से प्रेरित थे। स्वामी जी के पिताजी कलकत्ता उच्च न्यायालय में अधिवक्ता थे और दादाजी श्री दुर्गचरण दत्त संस्कृत और फारसी के प्रकांड विद्वान थे। परिवार से विरासत में मिले आध्यात्मिक, तार्किक और आधुनिक विचारो के मेल ने स्वामी जी को जीवन को देखने का सम्पूर्ण दृष्टिकोण प्रदान किया जो कि उनकी विचारधारा और दुनिया को देखने के नजरिये में प्रतिविम्बित होता है। जैसे जैसे स्वामी जी बड़े हुए उनकी समझ अत्यंत गहरी, आध्यात्मिक और तार्किक होती चली गयी।

स्वामी विवेकानंद ने विश्व पटल पर हिन्दू धर्म को तथ्यात्मक रूप से मजबूत पहचान दिलाई थी। वो स्वामी विवेकानंद जी ही थे जिन्होंने पश्चिम दुनिया को योग और वेदों से  अवगत कराया था। 

यूं तो स्वामी जी के जीवन से जुडे कई प्रसंग काफी मशहूर हुए जब उस वक़्त के कुछ व्यक्तियों द्वारा स्वामी जी से चिढ़ कर उनका अपमान करने की चेष्ठा की और बदले में स्वामी जी ने अपनी हाजिर जवाबी और तार्किक बुद्धिमता से उनको प्रभावित करते हुए अपनी बौद्धिक क्षमता से दुनियाभर को अचंभित कर दिया। उनमे से कुछ यहाँ प्रस्तुत हैं।

एक बार की बात है जब स्वामी जी विदेश यात्रा पर गए हुए थे वहां उनके पगड़ी बांधे हुए सन्यासी वेश का मजाक बनाते हुए एक अंग्रेज ने उनकी पगड़ी खींच दी। स्वामी जी ने उससे अंग्रेजी में पूछा कि आपने मेरी पगड़ी क्यों खींची? 

   स्वामी जी को अंग्रेजी में बात करते सुन वो अंग्रेज स्वामी जी से पूछता है कि क्या आप पढ़े लिखे हैं? स्वामी जी उत्तर देते हैं कि हाँ, मैं पढा लिखा सज्जन हूँ । 

   स्वामी जी का जवाब सुन कर वो अंग्रेज बोला कि आप कपड़ो से न तो शिक्षित लग रहे हैं और न ही सज्जन। 

   जवाब में स्वामी जी बोले कि आपके यहाँ आप लोगो को सज्जन आपके कपड़े सिलने वाले दर्जी बनाते हैं लेकिन हमारे देश मे सज्जन हमारे किरदार और परवरिश बनाती है। 

   इसी तरह एक बार अलवर के राजा मंगल सिंह ने अपनी सभा मे स्वामी जी की हिन्दू आस्था पर प्रहार करते हुए कहा कि आप लोग बेवजह ही बेजान मूर्तियों की पूजा करते हो जबकि ये सिर्फ मूर्तियां मात्र हैं जिनमे भगवान नहीं हैं और मुझे यह मूर्तिपूजा अर्थहीन नजर आती है। 

   इस पर स्वामी जी उस सभा मे लगी राजा मंगल सिंह के पिताजी की बड़ी सी तस्वीर के पास पहुचे और उस सभा में मौजूद वहां के दीवान से उस तस्वीर पर थूकने को कहा।

यह सुन राजा अत्यधिक क्रोधित होते हुए बोला कि आपने मेरे पिताजी की तस्वीर पर थूकने के लिए क्यों कहा? 

   इसके जवाब में स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले, ये आपके पिताजी कहाँ हैं ये तो महज कागज का टुकड़ा है। ठीक उसी प्रकार जिस तरह आपका मानना है कि  मूर्ति में भगवान नही हैं और वो सिर्फ मिट्टी धातु का टुकड़ा है उसी तरह मेरा मानना है कि ये आपके पिताजी की कागज पर बनाई हुई तस्वीर मात्र है आपके पिताजी नही। 

   तो आप एक कागज के टुकड़े पर थूकने की बात पर इतने क्रोधित क्यों हो रहे हैं?

   इस प्रकार वो राजा स्वामी जी के साथ किये अपने व्यवहार पर लज्जित हुए और उनसे माफी माँगी। 

   इस तरह से स्वामी जी के देश विदेश से जुड़े कई प्रसंग हुए जिनसे स्वामी जी की बुद्धिमत्ता, हाजिरजवाबी और आध्यात्मिक तार्किक और बौद्धिक शक्ति का लोहा सारी दुनिया ने माना।

 स्वामी जी के प्रेरणादायक जीवन मूल्य – 

स्वामी जी ने समाज को खासकर युवाओं को अपने जीवन दर्शन और अनुभव से जीवन जीने के कुछ खास मन्त्र दिए जो किसी के लिए भी एक सफल और आदर्श जीवन जीने का आधार बन सकते हैं। स्वामी जी की इन शिक्षाओं को आदर्श मान कर देश के युवा अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ सकते हैं। 

1. अगर आप चाहते हैं कि लोग आपमे विश्वास रखें तो आप हर उस काम को नियत समय में पूरा करें जिसका आपने जिम्मा या संकल्प लिया हैं।

2. स्वामी जी जीवन मे मानवीय रिश्तों कोकाफी महत्व देते थे उनके अनुसार भले ही आपके बहुत सारे रिश्ते न हो लेकिन जो भी हों जितने भी हों वो सभी जीवंत हों, मधुर हों। 

3. आपके लिए दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति आप खुद होने चाहिए, अगर आप खुद से संवाद नही कर सकते, खुद को पहचान नहीं सकते, खुद की देखभाल नहीं कर सकते तो आपके द्वारा किया हुआ सब व्यर्थ चला जायेगा। 

4. जब भी आप वैचारिक अन्तरद्विन्द से झूझ रहे हो तो अपने भावनात्मक पहलू की जरूर सुनें। ये आपको एक बेहतर इंसान बनने में मदद करेगा।

5. अगर आप खुद को असमर्थ या कमजोर महसूस करते हैं तो ये जीवन मे आपकी हार की शुरुआत है और सबसे बड़ा पाप भी। कभी खुद को कमजोर न समझें, अगर आप खुद को कमजोर मान कोई काम करेंगे तो उसमें आपकी हार निश्चित है। 

6. उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक नहीं रुको। सफलता आपके कदम चूमेगी। 

7. आपकी सफलता कितनी शानदार होगी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आपने उस सफलता को पाने के लिए कितना बड़ा संघर्ष किया है।

8. कभी भी अपने न्याय पथ से भ्रमित न होना। इससे फर्क नहीं पड़ता कि कौन आपके साथ है या खिलाफ है। कौन आपकी निंदा कर रहा है या इस्तुति। कभी किसी से भी प्रभावित होकर अपना न्याय का मार्ग मत छोड़ना। 

9. अपने विचारों में स्थिरता और एकाग्रता लाओ यही आपको सफलता का सही मार्ग दिखायेगा। 

10. जीवन मे कभी सीखना मत छोड़ो, जीवन खुद में भी बहुत बड़ा शिक्षक होता है। अनुभव, प्रकृति, समाज और किताबें बहुत कुछ सिखाती हैं। इसलिए हमेशा सीखने की प्रवृत्ति खुद में बनाये रखनी चाहिए। 

इस प्रकार हम देखते हैं कि स्वामी विवेकानंद जी ने जीवन जीने का एक शानदार और सफल दर्शन प्रस्तुत किया। स्वामी विवेकानंद जी न केवल आध्यात्मिक रूप से गुणी थे बल्कि वैज्ञानिक और तार्किक दृष्टिकोण के भी ज्ञाता थे। आजकल के समय को देखते हुए हर विद्यार्थी को स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए जिससे उसका वैचारिक, चारित्रिक और व्यवहारिक जीवन का उचित निर्माण हो सके।